Logo Design by FlamingText.com
Logo Design by FlamingText.com

शुक्रवार, 27 जुलाई 2018

On जुलाई 27, 2018 by Kathak Krazzy   No comments


Hi. I am Santosh Sawriya Am Create a Blog

गुरुवार, 26 जुलाई 2018


गुरु महिमा

'गुरु ब्रह्मा गुरुर्विष्णु: गुरुदेव महेश्वर:।'
गुरु साक्षात्परब्रह्म तस्मैश्री गुरुवे नम:।।
अर्थात- गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है और गुरु ही भगवान शंकर है। गुरु ही साक्षात परब्रह्म है। ऐसे गुरु को मैं प्रणाम करता हूं।
           
          गुरु के प्रति नतमस्तक होकर कृतज्ञता व्यक्त करने का दिन है गुरुपूर्णिमा। गुरु के लिए पूर्णिमा से बढ़कर और कोई तिथि नहीं हो सकती। जो स्वयं में पूर्ण है, वही तो पूर्णत्व की प्राप्ति दूसरों को करा सकता है। पूर्णिमा के चंद्रमा की भांति जिसके जीवन में केवल प्रकाश है, वही तो अपने शिष्यों के अंत:करण में ज्ञान रूपी चंद्र की किरणें बिखेर सकता है। इस दिन हमें अपने गुरुजनों के चरणों में अपनी समस्त श्रद्धा अर्पित कर अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करनी चाहिए। गुरु कृपा असंभव को संभव बनाती है। गुरु कृपा शिष्य के हृदय में अगाध ज्ञान का संचार करती है।




गुरु-पूर्णिमा का महत्व
        योग्य गुरु के बिना व्यक्ति का जीवन निरर्थक है। गुरु के बिना ना तो व्यक्ति ज्ञान प्राप्त कर सकता है और ना ही आत्म मुक्ति। हमारे जीवन में गुरु की भूमिका बेहद अहम है, यूं तो हम इस समाज का हिस्सा कहलाते है लेकिन हमें इस समाज योग्य केवल गुरु ही बनाते हैं।             
          शास्त्रों में गु का अर्थ बताया गया है- अंधकार या मूल अज्ञान और रु का का अर्थ किया गया है- उसका निरोधक। गुरु को गुरु इसलिए कहा जाता है कि वह अज्ञान तिमिर का ज्ञानांजन-शलाका से निवारण कर देता है। अर्थात अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाले को 'गुरु' कहा जाता है।
"अज्ञान तिमिरांधश्च ज्ञानांजन शलाकया,चक्षुन्मीलितम तस्मै श्री गुरुवै नमः "
          गुरु तथा देवता में समानता के लिए एक श्लोक में कहा गया है कि जैसी भक्ति की आवश्यकता देवता के लिए है वैसी ही गुरु के लिए भी।  बल्कि सद्गुरु की कृपा से ईश्वर का साक्षात्कार भी संभव है। गुरु की कृपा के अभाव में कुछ भी संभव नहीं है। 
        गुरु की महत्ता को दर्शाते हुए महान संत कबीरदास ने कहा है- "गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पाये, बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो मिलाये।" यानि भगवान से कहीं अधिक महत्वपूर्ण स्थान गुरु का होता है।
        शास्त्रों के अनुसार गुरु पूर्णिमा के दिन जगत गुरु माने जाने वाले महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास (महर्षि वेद व्यास) जी का जन्म हुआ था। वे संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे और उन्होंने चारों वेदों की भी रचना की थी। इस कारण उनका एक नाम वेद व्यास भी है। गुरु पूर्णिमा का यह दिन इन्हीं को समर्पित है। गुरु पूर्णिमा के दिन महर्षि वेद व्यास ने चारों वेदों की भी रचना की थी। इसी कारण से उनका नाम वेद व्यास पड़ा। उन्हें आदिगुरु कहा जाता है और उनके सम्मान में गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा नाम से भी जाना जाता है। भक्तिकाल के संत घीसादास का भी जन्म इसी दिन हुआ था वे कबीरदास के शिष्य थे।
वैदिक ग्रंथों में शिव को माना जाता है पहला गुरु
            पुराणों के अनुसार, भगवान शिव सबसे पहले गुरु माने जाते हैं। शनि और परशुराम इनके दो शिष्य हैं। शिवजी ने ही सबसे पहले धरती पर सभ्यता और धर्म का प्रचार-प्रसार किया था इसलिए उन्हें आदिदेव और आदिगुरू कहा जाता है। शिव को आदिनाथ भी कहा जाता है। आदिगुरू शिव ने शनि और परशुराम के साथ 7 लोगों को दिया। ये ही आगे चलकर सात ह्मर्षि कहलाए और इन्होंने आगे चलकर शिव के ज्ञान को चारों तरफ फैलाया।
        आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं। इस दिन गुरु पूजा का विधान है। गुरु पूर्णिमा वर्षा ऋतु के आरम्भ में आती है। इस दिन से चार महीने तक परिव्राजक साधु-सन्त एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान की गंगा बहाते हैं। ये चार महीने मौसम की दृष्टि से भी सर्वश्रेष्ठ होते हैं। न अधिक गर्मी और न अधिक सर्दी। इसलिए अध्ययन के लिए उपयुक्त माने गए हैं। जैसे सूर्य के ताप से तप्त भूमि को वर्षा से शीतलता एवं फसल पैदा करने की शक्ति मिलती है, वैसे ही गुरु-चरणों में उपस्थित साधकों को ज्ञान, शान्ति, भक्ति और योग शक्ति प्राप्त करने की शक्ति मिलती है।
       गुरु पूर्णिमा के दिन का कृषि क्षेत्र में भी अति महत्व है, व्यास पूर्णिमा को परिपक्व वायु परीक्षण किया जाता है। जोकि मॉनसून के दौरान कृषि और बागवानी के कार्यो के लिए अत्यंत उपयोगी है। व्यास पूर्णिमा को वायु परीक्षण के लिए अनुकूल माना जाता है। इस दिन मानसून का परीक्षण करके नई फसलों के लिए भविष्यवाणी की जाती है। इसी आधार पर अगले 4 महीनों के लिए सूखे और बाढ़ की स्थिति का अनुमान लगाया जाता है। भारत कृषि प्रधान देश है। इसलिए, यह दिन और अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है। 

आषाढ़ की पूर्णिमा को ही क्यों

आषाढ़ पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मानने का क्या राज़ है? धर्म जीवन को देखने का काव्यात्मक ढंग है। सारा धर्म एक महाकाव्य है। अगर यह खयाल में आए, तो आषाढ़ की पूर्णिमा बड़ी अर्थपूर्ण हो जाएगी। अन्यथा आषाढ़ में पूर्णिमा दिखाई भी न पड़ेगी। बादल घिरे होंगे, आकाश खुला न होगा। और भी प्यारी पूर्णिमाएं हैं, शरद पूर्णिमा है, उसको क्यों नहीं चुन लिया? लेकिन चुनने वालों का कोई खयाल है, कोई इशारा है। वह यह है कि गुरु तो है पूर्णिमा जैसा, और शिष्य है आषाढ़ जैसा। शरद पूर्णिमा का चांद तो सुंदर होता है, क्योंकि आकाश ख़ाली है। वहां शिष्य है ही नहीं, गुरु अकेला है। आषाढ़ में सुंदर हो, तभी कुछ बात है, जहां गुरु बादलों जैसा घिरा हो शिष्यों से। शिष्य सब तरह के हैं, जन्मों-जन्मों के अंधेरे को लेकर आ छाए हैं। वे अंधेरे बादल हैं, आषाढ़ का मौसम हैं। उसमें भी गुरु चांद की तरह चमक सके, उस अंधेरे से घिरे वातावरण में भी रोशनी पैदा कर सके, तो ही गुरु है। इसलिए आषाढ़ की पूर्णिमा! वह गुरु की तरफ भी इशारा है और उसमें शिष्य की तरफ भी इशारा है। और स्वभावत: दोनों का मिलन जहां हो, वहीं कोई सार्थकता है।

गुरु की महिमा

          गुरु को गोविंद से भी ऊंचा कहा गया है। अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाले को ‘गुरु’ कहा जाता है। गुरु तथा देवता में समानता के लिए एक श्लोक में कहा गया है कि जैसी भक्ति की आवश्यकता देवता के लिए है वैसी ही गुरु के लिए भी। सद्गुरु की कृपा से ईश्वर का साक्षात्कार भी संभव है। गुरु की कृपा के अभाव में कुछ भी संभव नहीं है। ‘व्यास’ का शाब्दिक संपादक, वेदों का व्यास यानी विभाजन भी संपादन की श्रेणी में आता है। कथावाचक शब्द भी व्यास का पर्याय है। कथावाचन भी देश-काल-परिस्थिति के अनुरूप पौराणिक कथाओं का विश्लेषण भी संपादन है। भगवान वेदव्यास ने वेदों का संकलन किया, 18 पुराणों और उपपुराणों की रचना की। ऋषियों के बिखरे अनुभवों को समाजभोग्य बना कर व्यवस्थित किया। पंचम वेद ‘महाभारत’ की रचना इसी पूर्णिमा के दिन पूर्ण की और विश्व के सुप्रसिद्ध आर्ष ग्रंथ ब्रह्मसूत्र का लेखन इसी दिन आरंभ किया। तब देवताओं ने वेदव्यासजी का पूजन किया। तभी से व्यासपूर्णिमा मनायी जा रही है। ‘‘तमसो मा ज्योतिगर्मय’’ अंधकार की बजाय प्रकाश की ओर ले जाना ही गुरुत्व है। आगम-निगम-पुराण का निरंतर संपादन ही व्यास रूपी सद्गुरु शिष्य को परमपिता परमात्मा से साक्षात्कार का माध्यम है। जिससे मिलती है सारूप्य मुक्ति। तभी कहा गया- ‘‘सा विद्या या विमुक्तये।’’ आज विश्वस्तर पर जितनी भी समस्याएं दिखाई दे रही हैं, उनका मूल कारण है गुरु-शिष्य परंपरा का टूटना। श्रद्धावाल्लभते ज्ञानम्। आज गुरु-शिष्य में भक्ति का अभाव गुरु का धर्म ‘‘शिष्य को लूटना, येन केन प्रकारेण धनार्जन है’’ क्योंकि धर्मभीरुता का लाभ उठाते हुए धनतृष्णा कालनेमि गुरुओं को गुरुता से पतित करता है। यही कारण है कि विद्या का लक्ष्य ‘मोक्ष’ न होकर धनार्जन है। ऐसे में श्रद्धा का अभाव स्वाभाविक है। अन्ततः अनाचार, अत्याचार, व्यभिचार, भ्रष्टाचारादि कदाचार बढ़ा। व्यासत्व यानी गुरुत्व अर्थात् संपादकत्व का उत्थान परमावश्यक है।

क्या करें गुरु पूर्णिमा के दिन
  • प्रातः घर की सफाई, स्नानादि नित्य कर्म से निवृत्त होकर साफ-सुथरे वस्त्र धारण करके तैयार हो जाएं।
  • घर के किसी पवित्र स्थान पर पटिए पर सफेद वस्त्र बिछाकर उस पर 12-12 रेखाएं बनाकर व्यास-पीठ बनाना चाहिए।
  • फिर हमें 'गुरुपरंपरासिद्धयर्थं व्यासपूजां करिष्ये' मंत्र से पूजा का संकल्प लेना चाहिए।
  • तत्पश्चात् दसों दिशाओं में अक्षत छोड़ना चाहिए।
  • फिर व्यासजीब्रह्माजीशुकदेवजी, गोविंद स्वामीजी और शंकराचार्यजी के नाम, मंत्र से पूजा का आवाहन करना चाहिए।
  • अब अपने गुरु अथवा उनके चित्र की पूजा करके उन्हें यथा योग्य दक्षिणा देना चाहिए।
व्रत और विधान
  • इस दिन (गुरु पूजा के दिन) प्रात:काल स्नान पूजा आदि नित्य कर्मों से निवृत्त होकर उत्तम और शुद्ध वस्त्र धारण कर गुरु के पास जाना चाहिए।
  • गुरु को ऊंचे सुसज्जित आसन पर बैठाकर पुष्पमाला पहनानी चाहिए। इसके बाद वस्त्रफलफूल  माला अर्पण कर तथा धन भेंट करना चाहिए। इस प्रकार श्रद्धापूर्वक पूजन करने से गुरु का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
  • गुरु के आशीर्वाद से ही विद्यार्थी को विद्या आती है। उसके हृदय का अज्ञानता का अन्धकार दूर होता है। गुरु का आशीर्वाद ही प्राणी मात्र के लिए कल्याणकारी, ज्ञानवर्धक और मंगल करने वाला होता है। संसार की संपूर्ण विद्याएं गुरु की कृपा से ही प्राप्त होती हैं और गुरु के आशीर्वाद से ही दी हुई विद्या सिद्ध और सफल होती है।
  • गुरु पूर्णिमा पर व्यासजी द्वारा रचे हुए ग्रंथों का अध्ययन-मनन करके उनके उपदेशों पर आचरण करना चाहिए।
  • इस दिन केवल गुरु (शिक्षक) ही नहीं, अपितु माता-पिता, बड़े भाई-बहन आदि की भी पूजा का विधान है।
  • इस पर्व को श्रद्धापूर्वक मनाना चाहिए, अंधविश्वासों के आधार पर नहीं। गुरु पूजन का मन्त्र है-
'गुरु ब्रह्मा गुरुर्विष्णु: गुरुदेव महेश्वर:।'
गुरु साक्षात्परब्रह्म तस्मैश्री गुरुवे नम:।।
गुरु पूर्णिमा पर्व की महत्ता : 
            गुरु पूजन व्यक्ति के ज्ञान को बढ़ाता है। भारत एक प्राचीन और पारंपरिकदेश है। यहां,गुरु की पूजा भगवान से पहले की जाती है। गुरु पूर्णिमा पर्व परगुरु को सम्मान दिया जाता है और उन्हें गुरु दक्षिणा अर्पण करके उनका आशीर्वाद लिया जाता है। गुरु पूर्णिमा अथवा व्यास पूर्णिमा के अवसर पर विश्व के गुरु व्यास नारायण की पूजा की जाती है। इस दिन गुरु की पूजा करना और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करना बहुत शुभ माना जाता है। जीवन में ज्ञान और अच्छाई के मार्ग पर चलने के लिएगुरु होना आवश्यक है जिसके आशीर्वाद से, व्यक्ति आध्यात्मिक पथ पर चलता है। गुरु और शिष्य के बीच संबंध पूर्णतः आध्यात्मिक बंधन है जो उनकी उम्र से प्रभावित नहीं होता। भक्ति का यह संबंध परिपक्वता और मानवता पर आधारित है। शिष्य को सदैव यह अनुभव करना चाहिए कि गुरु के मार्गदर्शन से उसकी आध्यात्मिकता का विकास होगा और शिक्षक को अपने शिष्य के मानसिक कल्याण के विषय में सोचना चाहिए। 
     
      भारत में, गुरु को आध्यात्मिकधार्मिक और राजनीतिक महत्व दिया जाता है।परेशानी के समयगुरुओ ने इस देश के लिए एक नया रास्ता दिखाया है। वे सिर्फ एक शिक्षक नहीं बल्कि, वे व्यक्ति को बताते हैं कि किसी भी प्रकार की समस्या और खतरे से कैसे बाहर निकलना है। गुरु एक व्यक्ति को अंधेरे से प्रकाश की और लाता है। सरल शब्दों में, उन्हें ज्ञान का भण्डार भी कहा जा सकता है।